एक मुर्ग़ा और तीन चूहे साथ साथ रहते थे। एक दिन
मुर्गे ने सबेरे जागकर सबको उठा दिया और अपना काम करने लगा। जब वह खेती कर रहा था, तो उसे एक गेहूँ की बाली मिली। उसने सोचा कि इसको पीसकर रोटी बना लूँगा। उसने अपने दोस्तों को बुलाया। हे चीका! हे चीकू! हे चूचू! जल्दी आओ। देखो मुझे क्या मिला है। तीनों चूहे दौड़कर आए। मुर्ग़े के हाथ में गेहूँ की बाली देखकर वे तीनों बोले - अरे! यह तो गेहूँ की बाली है। यह तुम्हें कहाँ से मिली? मुर्ग़े ने कहा - यहीं खेत में पड़ी नज़र आई। इससे हम रोटियाँ बना लेंगे। तो चूहों ने कहा - उसके लिए तो बाली से गेहूँ को अलग करना होगा न। तो मुर्ग़े ने कहा तो चलो अलग करते हैं। तुरंत चूहे बहाना बनाकर भाग निकले। मुर्ग़े ने अकेले ही सब काम किया और गेहूँ के आटे से रोटियाँ भी बनाई। गरमा गरम रोटी रोटी खाने के लिए तीनों चूहे बेताब होकर दौड़ते हुए आए। तब मुर्ग़े ने उन्हें रोका और पूछा - गेहूँ की बाली किसे मिली?
चूहों ने कहा - आपको।
आटा किसने पीसा?
आपने।
रोटी किसने बनाई?
आपने।
तो रोटी कौन खाएगा?
चूहे उदास हो गाए।
तब मुर्ग़े ने कहा - आलस बुरी बला है। मेहनत करो।
सब दोस्तों ने मिलजुकर रोटी खाई।
- वुल्ली श्री साहिती
कक्षा 5 'सी'
केंद्रीय विद्यालय नं. 1 गोलकोंडा, हैदराबाद